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' నువ్వొక పచ్చని చెట్టయితే పిట్టలు వాటంతట అవే వచ్చి వాలేను'..!.

6, ఫిబ్రవరి 2014, గురువారం

Srinivasu Gaddapati కవిత

य़े मेरी जहाँ.... ------------------ श्रीनिवासु गद्दापाटि -------------------- अक्सर मेरी खानों में एक दर्दभरी गीत गूँजती रहतीहै जो सदियों से..... मेरे बाप, दादा... परदादों की जीवन के साथ-साथ अब मेरी भी नींद हराम करती है जमाना बदलती है रात होती है... सुबह निकलती है फिर भी वह दर्दभरी कहानी वही जिंदगी वही माहौल ऐसा क्यों होताहै...? मेरी ही जहाँ मै गर्व के साथ कह नही सकता य़े मेरी जहाँ फिर भी य़े कैसी जहाँ..? मुझे अपनों में पराय़ा मेहसूसी.. सारे जहाँ से अच्छा.... हिंदुस्था हमारा..

by Srinivasu Gaddapati



from kavi sangamam*కవి సంగమం*(Poetry ) http://ift.tt/1cYZ2fb

Posted by Katta

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